बुधपूर्णिमा पर बुद्ध के बारे मैं विशेष
*सोचने समझने एवं विचार करने वाली बात है कि दुनिया के महानतम विद्वान बोद्धिसत्व बाबा साहेब डॉ अंबेडकर ने बुद्ध के मार्ग को ही क्यों चुना ?*
सबसे पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि 14 अक्टूबर 1956 आते आते बाबा साहेब अंबेडकर बहुत बड़े महापुरुष बन चुके थे और महापुरुषों की विशेषता होती है कि वे प्रकृति के के नियमों को अपने जीवन में उतारने लगते हैं और प्रकृति का नियम है कि वह धर्म जाति सम्प्रदाय क्षेत्र भाषा अथवा लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं करती है, जिनसे जीवों की उत्पति होती है पृथ्वी,जल, वायु और अग्नि प्रकृति के यह चारों तत्व भी सभी जीवों को जरूरत के अनुसार उपलब्ध होते हैं।
जो भी व्यक्ति प्रकृति को भलीभाँति समझ लेता है वह प्रकृति का रक्षक बन जाता है और प्रकृति का रक्षक बन कर वह मानव ही नहीं बल्कि सभी प्रकार के प्राणियों के साथ साथ पेड़ पौधों के कल्याण का भी ध्यान रखने लगता है साथ ही वह अपने निजी जीवन से ऊपर उठकर सबके कल्याण में जुट जाता है ऐसे व्यक्ति को महापुरुष कहा जाता है।
तथागत बुद्ध एक सच्चे महापुरुष थे उन्हें मात्र 35 वर्ष की उम्र में ही सच्चाई का ज्ञान हो गया था और ज्ञान होने के बाद उन्होंने प्राप्त उस सच्चे ज्ञान को अपने पास नहीं रखा बल्कि करीब 50 वर्ष तक पैदल चलकर सम्पूर्ण भारत में बांटने का काम किया था।
बुद्ध ने जिस मार्ग की खोज की उसमें समता,स्वतंत्रता, बंधुता, करूणा,मैत्री एवं शील के साथ साथ विज्ञान को महत्वपूर्ण समझा गया।
बुद्ध की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने अपने को न तो ईश्वर माना और न परमेश्वर माना साथ ही उन्होंने कहा कि मैं न तो भाग्य विधाता हूँ और न मोक्षदाता हूँ बल्कि मैं तो मार्गदाता हूँ।
बुद्ध को जानने से पता चलता है कि वे न तो नास्तिक थे और न आस्तिक थे बल्कि वे तो वास्तविक थे एवं वर्तमान जीवन में आने वाले दुखों को दूर करने वाले बहुत बड़े विद्वान थे।
उनके मार्ग में न तो अन्धविश्वाश था और न कोई पाखंड या आडंबर।
वे न तो यह स्वीकार करते थे कि शरीर में आत्मा नाम की कोई चीज रहती है और न यह मानते थे कि मरने के बाद वह आत्मा शरीर से निकलकर परमात्मा में समा जाती है।
बुद्ध का कहना था कि कर्मकांड एवं पूजा पाठ करने से भाग्य नहीं बदलता है क्योंकि भाग्य होता ही नहीं है तो बदलेगा कहाँ से ?
बुद्ध ने कर्म को महत्वपूर्ण माना है और कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने कुशल कर्मो से अपना भाग्य स्वयं लिखने की शक्ति रखता है।
बुद्ध ने कभी भी अहिंसा परमोधर्म की बात नहीं की बल्कि यहां तक कहा है कि जब न्याय नेकी और सद्धर्म को खतरा हो तो भिग्गी बिल्ली बनकर मत बैठो।
साथ ही उन्होंने सभी को आगाह करते हुए कहा था कि इतने कड़वे भी मत बनो की दुनिया तुम्हें थूक दे अथवा दुत्कार दे एवं इतने मीठे भी मत बनो की दुनिया तुम्हें निगल जाए।
बुद्ध ही एक मात्र ऐसे महापुरुष हुए हैं कि उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति को पंचशील नामक एक पैमाना दिया जिसके माध्यम से हर कोई अपना मूल्यांकन कर सकता है कि मैं सही मार्ग पर चल रहा हूँ अथवा भटक गया हूँ।
पांच बिन्दुओं पर आधारित बुद्ध के इस पंचशील रूपी पैमाने पर नजर डालना बहुत जरूरी है।
1, कोई भी व्यक्ति यदि बेवजह लड़ाई झगड़ा अथवा हिंसा करता है तो उसमें सुधार करने की जरूरत है।
2, कोई भी व्यक्ति यदि चोरी करता है तो उसे अपने आप मे सुधार करने की जरूरत है।
3, कोई भी व्यक्ति चरित्रहीन है तो उसमें कमी है जिसमें सुधार की जरूरत है।
4, कोई भी व्यक्ति झूठ बोलता है तो उसमें कमी है उसमें सुधार करने की जरूरत है।
5, कोई भी व्यक्ति कच्ची पक्की शराब अथवा किसी भी प्रकार का नशा करता है तो उसमें कमी है उसमें सुधार करने की जरूरत है।
बुद्ध के इस पंचशील से कोई भी व्यक्ति अपने स्तर को माप सकता है।
बुद्ध ने इसके सम्बन्ध में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही थी कि किसी व्यक्ति का अपने स्तर से गिर जाना इतना खराब नहीं है लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि किसी व्यक्ति का कोई स्तर ही नहीं होना।
बाबा साहेब अंबेडकर भले ही 14 अक्टूबर 1956 को धम्म की दीक्षा ग्रहण की हो लेकिन इससे कई वर्ष पहले से ही वे बुद्ध की शरण में जा चुके थे तभी तो भारत के संविधान में बुद्ध के मूल सिद्धांतों(समता, स्वतंत्रता एवं बंधुता) को शामिल किया गया था।
बोद्धिसत्व बाबा साहेब डॉ अंबेडकर द्वारा लिखित भारत का संविधान व बुद्ध द्वारा स्थापित बौद्ध धम्म एवं प्रकृति तीनों में एक जैसी समानता है कि ये तीनों ही किसी भी व्यक्ति से धर्म जाति, सम्प्रदाय, क्षेत्र, भाषा और लिंग के आधार पर बिलकुल भी भेदभाव नहीं करते हैं बल्कि सबको एक समान समझते हैं तभी तो दुनिया के महानतम विद्वान बोद्धिसत्व बाबा साहेब अंबेडकर ने बुद्ध का ही मार्ग अपनाया था।
इस लेख की प्रस्तुति के साथ ही आप सभी को *बुद्ध पूर्णिमा पर हार्दिक बधाई एवं ढ़ेर सारी धम्मकामनाएँ।*