@#बुद्ध पूर्णिमा -----------------------------------
• त्रिगुण पावन वैशाख पूर्णिमा
• उपोसथ उपवास का दिन
• ध्यान साधना व दान का दिन
यह पावन दिन विशेष महत्व का दिन होता है क्योंकि पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा पूर्णत्व को प्राप्त होता है इसीलिए पूर्णिमा आनंद दायक पर्व के रूप में मनाई जाती है. हर पूर्णिमा बुद्ध के जीवन की किसी न किसी घटना को दर्शाती है. बुद्ध पूर्णिमा त्रिविध, त्रिगुण पावन पर्व है. वैशाख (वैसाक) पूर्णिमा सम्यक सम्बुद्ध भगवान बुद्ध के जीवन की तीन महत्वपूर्ण घटनाओं से संबंधित है.
*1. जन्म-*
563 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन तथागत बुद्ध का राजकुमार सिद्धार्थ के रूप में कपिलवस्तु गणराज्य के लुम्बिनी वन में शालवृक्ष के नीचे जन्म हुआ था .
*2. बुद्धत्व प्राप्ति-*
528 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन 35 वर्ष की आयु में बोधगया में बोधिवृक्ष पीपल के नीचे शाक्यपुत्र सिद्धार्थ को बोधित्व ज्ञान की प्राप्ति हुई थी .
*3. महापरिनिर्वाण-*
483 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन ही तथागत बुद्ध को कुशीनगर में शालवृक्ष के नीचे महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई .
संसार में इस प्रकार की तीन घटनाएं किसी भी महान पुरूष के साथ एक ही दिन नहीं घटी. इन तीन घटनाओं के कारण ही बुद्ध पूर्णिमा को त्रिविध या त्रिगुण पावन पर्व कहते है. इस प्रकार बुद्ध पूर्णिमा पवित्र है और मंगलकारी है.
पूर्णिमा के दिन उपासक उपासिकाओं द्वारा उपोसथ व्रत रखा जाता है व ध्यान साधना का अभ्यास किया जाता है. सुबह जल्दी उठकर स्नान कर बुद्ध की प्रतिमा के सम्मुख सपरिवार बुद्ध वंदना करें, तथागत के प्रति कृतज्ञता प्रकट करें कि उन्होंने मानव कल्याण के लिए धम्म दिया. विश्व के पहले वैज्ञानिक व महामानव बुद्ध का वंदन करें, कोई कर्मकांड न करें. करुणा के सागर की कृतज्ञता प्रकट करें. पंचशीलों का पालन करने का दृढ़ निश्चय करें. 'धम्मपद' और 'बुद्ध व उनका धम्म' को पढे, जाने व माने.
बुद्ध पुर्णिमा के उपोसत व्रत के दिन सुबह नाश्ता और दोपहर को भोजन करें लेकिन रात को कुछ भी नहीं खाएं, क्योंकि पूर्णिमा की रात उपवास, वंदना और ध्यान भावना करने की विशेष रात मानी जाती है.
पूर्णिमा की रात बड़ी पावन, मंगलमय, धम्म तरंगों से ओतप्रोत मानी जाती है .रात्रि को उपवास रखकर ध्यान साधना द्वारा सृष्टि की धम्म तरंगों में शरीर और मन को समाविष्ट करने से सुख की प्राप्ति होती है.
धम्म में दान का बड़ा महत्व होता है इसलिए पूर्णिमा के दिन अपने सामर्थ्य अनुसार भोजन, फल, वस्त्र, बच्चों को पाठ्य सामग्री, बुद्ध साहित्य आदि का दान भी करते है लेकिन कोरोना संकट के कारण मेडिकल गाइडलाइन का पूरा ध्यान रखें.यह भी कि इन परम्पराओं के पालन में कहीं भी कर्मकांड व अंधश्रद्धा नहीं हो. मानवतावादी व वैज्ञानिक सोच का पालन हो.
सुखो बुद्धानं उप्पादो...
अर्थात संसार में बुद्धों का जन्म लेना सुखदायक है. सुखकारी है बुद्धों का जन्म लेना.
*सबका कल्याण हो,*
*सभी प्राणी सुखी हो,
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बुद्ध पूर्णिमा का दिन दुनिया में इतना महत्वपूर्ण क्यों हैं जाने ?